मान्यता
इस व्रत का उल्लेख भविष्य पुराण में मिलता है। महाभारत युद्ध के समय जब अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पाँचों पुत्रों को मार दिया था। तब उनके जीवन के लिए धौम्य ऋषि ने द्रौपदी को इस व्रत के विषय में बताया था। धौम्य ऋषि ने द्रौपदी को बताया था कि सप्तमी वृद्धा अष्टमी तिथि को इस व्रत का वरण करके नवमी तिथि में पारण करना चाहिए। व्रत करने वाली माताओं को कुश का जीमूतवाहन बनाना चाहिए। तत्पश्चात उसकी पूजा करके कथा सुननी चाहिए। इसके अतिरिक्त लव-कुश की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा भी की जा सकती है।
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